*मदद चाहती है यह हब्बा की बेटी यशोदा कि हमजिसम राधा की बेटी* *…अंजुम कादरी*

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*मदद चाहती है यह हब्बा की बेटी यशोदा कि हमजिसम राधा की बेटी* *…अंजुम कादरी*

 

 

 

ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के

ये लुटते हुए कारवां ज़िन्दगी के

कहां हैं, कहां है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

 

ये पुरपेच गलियां, ये बदनाम बाज़ार

ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार

ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

 

ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियां

ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां

ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियां

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

 

वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन

थकी-हारी सांसों पे तबले की धन-धन

ये बेरूह कमरों में खांसी की ठन-ठन

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

 

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे

ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फ़िकरे

ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

 

यहां पीर भी आ चुके हैं, जवां भी

तनोमंद बेटे भी, अब्बा, मियां भी

ये बीवी भी है और बहन भी है, मां भी

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी

यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी

पयम्बर की उम्मत, ज़ुलयखां की बेटी

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ

ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं। कुरान ,गीता, रामायण ,बायबिल, ग्रंथ को मान्ने वाले सभी लोगों को अल्लाह ईश्वर ने पैदा किया है वही सृष्टि का रचयिता है प्राकृतिक भी उसी ने रची है पशु पक्षी जानवर जीव जंतु आदि सब कुछ धरती गगन  उसी ने ही रचा है और पुरुष महिला को भी उसी ने रचा है और महिलाओं की इज्ज़त करो उसने हर एक मौतवर किताब में लिखा है कुरान में साफ-साफ लिखा है हज़रत उम्मे सलमा सारी दुनिया की मां  उम्मूल मोमिनीन फरमाती हैं एक दिन मैं अपने घर में बैठी अपना सर सुलझा रही थी कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की आवाज़ मिमबर पर सुनि मैंने बालों को तो यूं ही लपेट लिया और हुजरे में आकर आप की बात सुनने लगी तो आप उस वक्त आयत तिलावत फरमा रहे थे उसका तर्जुमा यह है नवी की बीवियो तुम आम औरतों की तरह ना हो अगर तुम अल्लाह से डरने वाली हो तो दबी ज़ुबान से बात ना किया करो कि दिल की खराबी में मुब्तिला कोई आदमी लालच में पड़ जाए बल्कि साफ सीधी बात करो जब अल्लाह ताला फरमा रहा है कि हम पूरी आज़ादी के साथ साफ-सुथरी बात कर सकते हैं तो हमारे पुरुष प्रधान में यह बात क्यों बहुत सख्ती से लागू हो रही है कि महिलाएं किसी भी योग्य नहीं है और उनका सिर्फ शिकार ही किया जाए हर एक पहलू से उनको नीचा दिखाया जाए किसी भी डिपार्टमेंट में महिलाओं की कोई गुंजाइश आखिर पुरुष प्रधान को क्यों बर्दाश्त नहीं है जब हमारे प्यारे नबी अकरम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने हम महिलाओं को आज़ादी दिलाई है हम लोगों पर से कई प्रथाएं हटाईं हैं तो फिर पुरुष प्रधान क्यों आढे आते हैं आखिर ज़माने में कब तक महिलाओं का इस्तेमाल किया जाएगा पुरुष प्रधान का मानना है महिला सर का ताज नहीं है तो आप यह भी समझले की महिला पैर की जूती भी नहीं है वह आपकी असिस्टेंट है प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया है इल्म हासिल करो इल्म हासिल करने के लिए चाहे आपको चीन तक क्यों ना जाना पड़े लेकिन आपने कहीं भी यह नहीं फरमाया कि सिर्फ पुरुष प्रधान ही इल्म हासिल करें इसलिए उन महिलाओं से भी गुजारिश की जा रही है जो बेटी बेटा में गुरेज करती हैं  करती हैं भेदभाव रखती हैं अपने रवैये को वह महिलाएं बदले ताकि महिलाओं की इज्ज़त बरकरार रह सके और वह पुरुष प्रधान भी अपने रवैये में लोच लाएं जो महिलाओं से दीगर गलत काम करवाते हैं आज भारत की सिचुएशन इतनी डैमेज हो गई है हम अमरीका की मिसाल देते हैं क्या हमने अपने भारत का मूल्यांकन किया है हमारे भारत के अंदर देह व्यापार और रेप केस सबसे ज्यादा चरम पर है छोटी-छोटी बच्चियों के शरीर से खिलवाड़ हो रहा है  मजबूर भी महिलाओं को किया जाता है बदनाम भी महिलाओं को किया जाता है बल्कि भी महिलाओं की मानी जाती है सजा भी महिलाओं को दी जाती है जबकि पुरुष प्रधान ने अब तो हद से अत कर दी है आज की रिसर्च के अनुसार बेड टच सबसे ज्यादा पुरुष प्रधान ने पुरुष प्रधान को ही किया है यानी के  बालक का शिकार कर रहे हैं बालिकाओं के साथ-साथ बालकों का भी शिकार कर रहे हैं हद हो गई हैवानियत की

*मदद चाहती है यह हब्बा की बेटी यशोदा कि हमजिसम राधा की बेटी* *…अंजुम कादरी*

 

ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िन्दगी के
कहां हैं, कहां है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ये पुरपेच गलियां, ये बदनाम बाज़ार
ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियां
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन
थकी-हारी सांसों पे तबले की धन-धन
ये बेरूह कमरों में खांसी की ठन-ठन
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फ़िकरे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

यहां पीर भी आ चुके हैं, जवां भी
तनोमंद बेटे भी, अब्बा, मियां भी
ये बीवी भी है और बहन भी है, मां भी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत, ज़ुलयखां की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं। कुरान ,गीता, रामायण ,बायबिल, ग्रंथ को मान्ने वाले सभी लोगों को अल्लाह ईश्वर ने पैदा किया है वही सृष्टि का रचयिता है प्राकृतिक भी उसी ने रची है पशु पक्षी जानवर जीव जंतु आदि सब कुछ धरती गगन उसी ने ही रचा है और पुरुष महिला को भी उसी ने रचा है और महिलाओं की इज्ज़त करो उसने हर एक मौतवर किताब में लिखा है कुरान में साफ-साफ लिखा है हज़रत उम्मे सलमा सारी दुनिया की मां उम्मूल मोमिनीन फरमाती हैं एक दिन मैं अपने घर में बैठी अपना सर सुलझा रही थी कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की आवाज़ मिमबर पर सुनि मैंने बालों को तो यूं ही लपेट लिया और हुजरे में आकर आप की बात सुनने लगी तो आप उस वक्त आयत तिलावत फरमा रहे थे उसका तर्जुमा यह है नवी की बीवियो तुम आम औरतों की तरह ना हो अगर तुम अल्लाह से डरने वाली हो तो दबी ज़ुबान से बात ना किया करो कि दिल की खराबी में मुब्तिला कोई आदमी लालच में पड़ जाए बल्कि साफ सीधी बात करो जब अल्लाह ताला फरमा रहा है कि हम पूरी आज़ादी के साथ साफ-सुथरी बात कर सकते हैं तो हमारे पुरुष प्रधान में यह बात क्यों बहुत सख्ती से लागू हो रही है कि महिलाएं किसी भी योग्य नहीं है और उनका सिर्फ शिकार ही किया जाए हर एक पहलू से उनको नीचा दिखाया जाए किसी भी डिपार्टमेंट में महिलाओं की कोई गुंजाइश आखिर पुरुष प्रधान को क्यों बर्दाश्त नहीं है जब हमारे प्यारे नबी अकरम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने हम महिलाओं को आज़ादी दिलाई है हम लोगों पर से कई प्रथाएं हटाईं हैं तो फिर पुरुष प्रधान क्यों आढे आते हैं आखिर ज़माने में कब तक महिलाओं का इस्तेमाल किया जाएगा पुरुष प्रधान का मानना है महिला सर का ताज नहीं है तो आप यह भी समझले की महिला पैर की जूती भी नहीं है वह आपकी असिस्टेंट है प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया है इल्म हासिल करो इल्म हासिल करने के लिए चाहे आपको चीन तक क्यों ना जाना पड़े लेकिन आपने कहीं भी यह नहीं फरमाया कि सिर्फ पुरुष प्रधान ही इल्म हासिल करें इसलिए उन महिलाओं से भी गुजारिश की जा रही है जो बेटी बेटा में गुरेज करती हैं करती हैं भेदभाव रखती हैं अपने रवैये को वह महिलाएं बदले ताकि महिलाओं की इज्ज़त बरकरार रह सके और वह पुरुष प्रधान भी अपने रवैये में लोच लाएं जो महिलाओं से दीगर गलत काम करवाते हैं आज भारत की सिचुएशन इतनी डैमेज हो गई है हम अमरीका की मिसाल देते हैं क्या हमने अपने भारत का मूल्यांकन किया है हमारे भारत के अंदर देह व्यापार और रेप केस सबसे ज्यादा चरम पर है छोटी-छोटी बच्चियों के शरीर से खिलवाड़ हो रहा है मजबूर भी महिलाओं को किया जाता है बदनाम भी महिलाओं को किया जाता है बल्कि भी महिलाओं की मानी जाती है सजा भी महिलाओं को दी जाती है जबकि पुरुष प्रधान ने अब तो हद से अत कर दी है आज की रिसर्च के अनुसार बेड टच सबसे ज्यादा पुरुष प्रधान ने पुरुष प्रधान को ही किया है यानी के बालक का शिकार कर रहे हैं बालिकाओं के साथ-साथ बालकों का भी शिकार कर रहे हैं हद हो गई हैवानियत की

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