बेज़ुबानों की आवाज़ बनें, बाघ बचाएँ”- अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 2025

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राजीव कुमार ब्यूरो चीफ उधम सिंह नगर

 

बेज़ुबानों की आवाज़ बनें, बाघ बचाएँ”- अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 2025

बाघ, जिसे जंगल का राजा कहा जाता है, भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। इसकी शक्ति, सौंदर्य और गरिमा इसे एक अद्वितीय प्राणी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में बाघों की संख्या में भारी गिरावट आई है, जिसके कारण इनकी प्रजाति संकट में आ गई है। इस संकट के प्रति लोगों को जागरूक करने और बाघों के संरक्षण के लिए हर साल 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है।
बाघ दिवस, बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक वार्षिक उत्सव है।  इसकी शुरुआत 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में व्लादिमीर पुतिन द्वारा की गई थी, जिन्होंने अमूर बाघ को बचाने को अपना मिशन बना लिया है। उन्होंने रूस में बाघों के अवैध शिकार, अवैध व्यापार, परिवहन या भंडारण के लिए कठोर दंड और लंबी जेल की सजा वाले कानूनों पर हस्ताक्षर किए।
इस दिवस का लक्ष्य बाघों के प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए एक वैश्विक प्रणाली को बढ़ावा देना और बाघ संरक्षण के मुद्दों पर जन जागरूकता और समर्थन बढ़ाना है।
बाघों की संख्या घटने के मुख्य कारण अवैध शिकार, जंगलों की कटाव, आवास की कमी, इंसान और बाघ के बीच बढ़ता संघर्ष और जलवायु परिवर्तन हैं।
भारत में “प्रोजेक्ट टाइगर” जैसे अभियान शुरू किए गए हैं, जिनका मकसद बाघों की घटती संख्या को बढ़ाना है।
बाघ खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपरी स्थान पर होता है और यह जंगलों के स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। यह शिकारी प्रजाति जंगल में जनसंख्या नियंत्रण और जैव विविधता बनाए रखने में मदद करता है। यदि बाघ नहीं रहेंगे तो पूरा पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है।
अप्रैल 2023 में, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में, दुनिया की 75% बाघ आबादी भारत में होगी। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि यह भी एक संयोग है कि भारत में बाघ अभयारण्य 75,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं और पिछले दस-बारह वर्षों में देश में बाघों की आबादी में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत में बाघों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2018 में 2,967 से बढ़कर 3,682 हो गई है। यह चार वर्षों के भीतर लगभग 24% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। यह आंकड़े एक सकारात्मक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जो 9 अप्रैल को मैसूर में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बताए गए 3,167 बाघों को पार कर गए हैं। यह घोषणा प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्षों के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम के साथ हुई, जो अपने प्रयासों के लिए विश्व स्तर पर प्रशंसित एक प्रसिद्ध संरक्षण पहल है।
हमें यह समझना होगा कि बाघ केवल एक जानवर नहीं है, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि बाघ नहीं रहेंगे, तो जंगलों का संतुलन भी बिगड़ जाएगा। इसलिए, बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए हमें एकजुट होकर काम करना चाहिए।

ई• रूपेश कुमार अरोरा
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर, रुद्रपुर

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