आज भाई आशु ग्रोवर और लोहिया मार्किट के साथ हम सब भी दुखी हैं । यह आशु नहीं,  । सैकड़ों हँसते खेलते परिवार की सारी खुशियाँ अपनी दुकानों के ढहने से उसके मलबे में दब गईं । इनमें काम करने वाले हजारों लोगों के रोजगार बड़े तकलीफ़देह मंज़र में बिखर गया । इस अंजाम ने हमें अंदर तक हिला दिया है ।

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आज भाई आशु ग्रोवर और लोहिया मार्किट के साथ हम सब भी दुखी हैं । यह आशु नहीं,  । सैकड़ों हँसते खेलते परिवार की सारी खुशियाँ अपनी दुकानों के ढहने से उसके मलबे में दब गईं । इनमें काम करने वाले हजारों लोगों के रोजगार बड़े तकलीफ़देह मंज़र में बिखर गया । इस अंजाम ने हमें अंदर तक हिला दिया है ।

आप सभी के लिए सब्र की प्रार्थना और इस राजनीति की भेंट चढ़ कर शहीद हुए आंदोलन को देखकर मन में भीषण आक्रोश है । जी हां, यह आंदोलन की शहादत है, जब कोई लक्ष्य हमारे बीच से दूसरों की गलतियों की वजह से नही रहता,तो उसकी मौत नही शहादत होती है । फोटोबाज़ी और लाइव के चक्कर में अनियंत्रित होकर अफसरों को अनावश्यक बुरा भला कहना, एक शांतिपूर्ण आंदोलन को ताली, थाली और मशाल जैसे काम करके अक्रेसिव बनाना, जनता द्वारा नकारे जा चुके लोगो द्वारा एक गैर राजनेतिक आंदोलन को अपनी राजनेतिक रोटियां सेकने की खातिर सत्ता के विरोध का आंदोलन बनाने का प्रयास कर लोगो ने इस आंदोलन को शहीद कर दिया। कागजी शेरों की फोटो अखबारों में बहुत छपी और लाइव को बहुत व्यूज मिले, लेकिन इस चक्कर में आपने दांव पर सैंकड़ों लोगों की रोजी रोटी को लगा दिया।

दिल डूबा हुआ है, आँखे भरी हैं और कितना कुछ याद आ रहा है । यह हम सभी का साझा ग़म है । हमारे दुकानदारों की इस तक़लीफ़ में दिल टूट गया है कि हमेशा अच्छे लोग, उनका अच्छा आंदोलन फोटोबाजों के चक्कर में इस तरह बिखर क्यों गया हैं । छपास रोगी, बुलडोजर सभी तो अपना काम करके चल दिए , लेकिन हम कहा जाएंगे, जो हमेशा आपके साथ दिल से थे, जो लोग इन दुकानों को २०१७ से बचा रहे थे।आज हम और आशु, चुपचाप रो रहे है, हमारे सबके आंगन का दुःख बढ़ गया है….

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