पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने आज मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय में शिक्षकों /वैज्ञानिकों को शिक्षक न मानने के प्रकरण की जांच कमिश्नर को सौंपने से उत्पन्न विधिक संकट एवं इस मामले में महामहिम राज्यपाल (कुलाधिपति) के माध्यम से शिक्षाविदों/ सेवानिवृत्त कुलपति से राय लेकर निर्णय करने के संबंध में विस्तृत चर्चा की।
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बताया कि गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय देश का प्रथम कृषि विश्वविद्यालय तथा देश में अन्न संकट को दूर करने हेतु हरित क्रांति का आगाज करने वाला विश्वविद्यालय है, उच्च शिक्षा से भिन्न यह कृषि शिक्षा के तहत शिक्षण- अनुसंधान- प्रसार के सिद्धांत पर चलने वाला प्रथम विश्वविद्यालय ICAR के (एकृप) एवं नार्प तथा जनरल बजट के लंबे- लंबे समय तक चलने वाले रिसर्च प्रोजेक्ट में विश्वविद्यालय द्वारा भर्ती किए गए शिक्षकों/ वैज्ञानिकों तथा छात्रों को इन्हीं प्रोजेक्ट में अनुसंधान के साथ-साथ उनका शिक्षण कार्य भी करते रहे! 2015 में तत्कालीन वित्त नियंत्रक पंकज तिवारी द्वारा अनावश्यक रूप से तथ्यहीन बिंदुओ के माध्यम से विश्वविद्यालय के इन वैज्ञानिकों/ शिक्षकों जिन्हें J.R.O./असिस्टेंट प्रोफेसर, A R.O./ असिस्टेंट प्रोफेसर तथा S.M.S./ प्रोफेसर के पद पर विश्वविद्यालय द्वारा नियमानुसार चयनित किया गया था, उन्हें विश्वविद्यालय शिक्षक न मानने का एक बवाल खड़ा कर दिया गया। जबकि पूरे देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों ने इन्हे शिक्षक/ वैज्ञानिक का दर्जा दिया है।
महोदय हाल ही में विश्व विद्यालय के 35 शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने का एक अति अनुचित निर्णय कृषि सचिव द्वारा विश्वविद्यालय को भेज दिया गया ये वह शिक्षक हैं जो शिक्षण के साथ-साथ रिसर्च करते हैं तथा उनकी सेवानिवृत्ति की आयु अन्य शिक्षकों की तरह 65 वर्ष है, परंतु यह कह दिया गया कि प्रोजेक्ट के कर्मचारी हैं अतः इन पर लागू नहीं होगा।विश्वविद्यालय के Act & status के तहत प्रबंध परिषद कई बार स्पष्ट कर चुकी है कि यह सभी वैज्ञानिक/ शिक्षक हैं तथा इन पर भी वही नियम लागू होगा जो शिक्षकों पर लागू होता है। उक्त प्रकरण पर शिक्षकों छात्रों में काफी क्षोभ एवं दुख है तथा इस प्रकार के 100 से अधिक शिक्षक हैं जिनके अंडर में लगभग 900 छात्र पी0एच0डी0 कर रहे हैं, शिक्षकों द्वारा व मेरे द्वारा इस संबंध में महामहिम राज्यपाल उत्तराखंड (कुलाधिपति), आपको (माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड), माननीय कृषि मंत्री एवं सचिव कृषि शिक्षा को अवगत कराया जा चुका है। कल समाचार पत्रों में यह पढ़ने को मिला कि इस प्रकरण की जांच कुमाऊं मंडल के आयुक्त की अध्यक्षता में सीडीओ उधमसिंहनगर एवं वित्त नियंत्रक/ जिला कोषाधिकारी उधम सिंह नगर को शासन द्वारा सौंपी गई है।
विधायक के नाते दो बार एवं उद्योगपति के नाते एक बार मैं उक्त विश्वविद्यालय की प्रबंध समिति का सदस्य रहा हूं तथा वही का छात्र हूं, मेरी समझ में यह विधिक नहीं है। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में प्रबंध परिषद कार्य करती है जिसमें 2 विधायकों के साथ-साथ सचिव कृषि शिक्षा, सचिव वित्त एवं ICAR के प्रतिनिधि होते हैं तथा महामहिम कुलाधिपति के अनुमोदन से नियुक्तियां/ चयन हुआ है जिसको गलत कहा जा रहा है, उचित होगा कि उक्त प्रकरण का समाधान महामहिम राज्यपाल कुलाधिपति के माध्यम से शिक्षाविदों /पूर्व कुलपति/पूर्व प्रोफेसर की समिति की जांच/रिपोर्ट पर कराया जाए।
कुलाधिपति के अनुमोदन एवं कुलपति/ विधायक गण /शासन के वरिष्ठ सचिवों की समिति (प्रबंध समिति) के निर्णय की जांच कमिश्नर, सीडीओ, वित्त नियंत्रक समिति से कराना अनुचित होने के साथ-साथ विधिक भी नहीं है तथा महामहिम के अधिकारों के विरुद्ध होगा।
उक्त प्रकरण को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विस्तृत रूप से सुना एवं तत्काल उन्होंने शासन द्वारा गठित की गई कुमाऊं आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी को तत्काल भंग करते हुए पूर्व विधायक राजेश शुक्ला को आश्वस्त किया कि उक्त प्रकरण का समाधान महामहिम राज्यपाल (कुलाधिपति) को विश्वास में लेकर जल्दी किया जाएगा।