रिपोर्टर राजीव कुमार रूद्रपुर
नगर की प्रमुख रामलीला का हुआ भव्य उद्घाटन, प्रथम दिवस नारद मोह की लीला का हुआ भव्य मंचन
रूद्र्रपुर- नगर की प्राचीनतम बस अड्डे वाली रामलीला का उद्घाटन बड़ी धूमधाम से मुख्य अतिथि बालाजी धाम के गुरूजी श्री हरनाम जी द्वारा फीता काटकर एवं प्रभु श्रीराम चन्द्र जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया। श्री रामलीला कमेटी तथा श्री रामनाटक क्लब के पदाधिकारियों एवं सदस्यों नें फूलमालाओं से लादकर, रामनाम का पटका तथा शाल ओढ़ाकर भेंटकर मुख्य अतिथि का स्वागत किया। श्री हरनाम गुरूजी के साथ आये गणमान्य नागरिकों का भी राम नाम का पटका पहनाकर स्वागत किया गया। समस्त भक्तों नें बाबा भजन गाये। श्रीरामनाम की धूूम ऐसी मची कि समस्त उपस्थित जन झूम उठे।
स्वागत संबोधन में श्री रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पवन अग्रवाल नें कहा कि हमें श्रीरामलीला मंचन जैसे प्राचीन कार्यक्रमों में सपरिवार उपस्थित रहना चाहिये। उससे ही हमें अपनी संस्कृति तथा धर्म का ज्ञान को एक नये नजरिये से देखनें एवं जानने को मिलता है। श्री रामनाम के स्मरण से सभी कष्ट मिटते हैं ।
मुख्य अतिथि श्री हरनाम जी नें कहा कि रामनाम ही इस कलयुग में बेड़ा पार करने का आधार है।आज रामलीला का अपना एक अलग ही महत्व है, वास्तव में यह कार्यक्रम हमें मानवता तथा जीवन मूल्यों का अनोखा संदेश देने का कार्य करता है। आज के समय लोगो में दिन-प्रतिदिन नैतिक मूल्यों का पतन देखने को मिल रहा है। यदि आज के समय में हमें सत्य और धर्म को बढ़ावा देना है तो हमें प्रभु श्री राम के पथ पर चलना होगा।
आज की लीला में देवऋषि नारद भगवान विष्णु जी की स्तुति में मगन होते है। उनकी गहन तपस्या से देवराज इन्द्र का सिंहासन डोल उठता है।देवराज इन्द्र अपनें मित्र कालादेव एवं पीलादेव को इसका कारण जानने हेतु भेजते है। यह दोनों घूमते – घूमते नारद जी को गहरी तपस्या करते हुये देखते हैं। वह जान जाते हैं कि देवराज इन्द्र का सिंहासन नारद जी की तपस्या के कारण ही हिला है। जव वह वापस आकर इन्द्र को यह खबर देतें हैं तो देवराज इन्द्र अपने मित्र कामदेव को देवऋषी की तपस्या भंग करनें के लिये भेजते हैं। तमाम प्रयासों के बाद भी कामदेव जब नारद जी की तपस्या भंग नहीं कर पाते तो वह नारद जी के पैरों में जा पड़ते हैं और उनसे क्षमा की प्रार्थना करते है। देवऋषि उनसे क्षमा मांगनें का कारण पूछते हैं तो कामदेव उन्हें बताते हैं कि उन्हें देवराज इन्द्र नें आपकी तपस्या भंग करनें के लिये भेजा था, जिसमें वह विफल रहे। यह सुनकर नारद को भी अहंकार हो जाता है और वह अहंकार के अधीन होकर को स्वयं अपनी प्रशंसा करते हुये ब्रहमा जी, शिवजी तथा भगवान विष्णु के पास पहुंच जाते हैं । भगवान विष्णु उनके अहंकार को पहचान जाते है और उनका अहंकार तोड़नें के लिये एक स्वयंवर की लीला रचते है। नारद मुनि जब विष्णु भगवान को राजा शीलनिधि की सुपुत्री विश्वमोहिनी से विवाह रचानें के लिये सुंदर स्वरूप प्रदान करनें की प्रार्थना करते हैं तो विष्णु भगवान उन्हें वानर रूप दे देते है। विश्वमोहिनी स्वयंवर में भगवान विष्णु जी के गलें में जयमाला पहना देती है और इस स्वयंवर मे नारद जी का बहुत उपहास हो जाता है। जब नारद जी अपनें वानर रूप को देखा तो कुपित होकर शाप दे देते हैं।
इस दौरान श्रीरामलीला कमेटी के अध्यक्ष पवन अग्रवाल, महामंत्री विजय अरोरा, कोषाध्यक्ष सीए अमित गंभीर, समन्वयक नरेश शर्मा, उपाध्यक्ष विजय जग्गा, महावीर आजाद, भारत भूषण चुघ, विजय भूषण गर्ग, रामनाटक क्लब के महामंत्री गौरव तनेजा, डायरेक्टर आशीष ग्रोवर आशू, विशाल भुड्डी, पवन जिन्दल, राकेश सुखीजा, रघुवीर अरोरा, जगदीष टंडन, अशोक गुम्बर, अमित अरोरा बोबी, गुरदीप गाबा, राजेश सिंघल, संदीप भारद्वाज, कुलदीप कुमार, राजकुमार छाबड़ा, हरीश अरोरा, मोहन लाल भुड्डी, रोहित राजपूत, मोहित, प्रेम खुराना, हरीष सुखीजा, संजीव आनन्द, अनिल तनेजा, राजकुमार कक्कड़, हरीश अरोरा, सचिन मंुजाल, विजय विरमानी, मनोज गाबा, अमित चावला, मोहित जिन्दल, योगेश जोशी, आशु नागपाल, संदीप छाबड़ा, अभिषेक कपूर, सुमित बब्बर, चिराग कालड़ा, लक्की जुनेजा, पुलकित बांबा, आदि उपस्थित थे।
आज की लीला में नारद जी का पात्र अभिनय मनोज मुंजाल, देवराज इन्द्र वैभव भुड्डी, कामदेव मोहन अरोरा, ब्रहमा जी- नितिश धीर, शंकर जी- रिंकू चोपड़ा, विष्णु भगवान- मनोज अरोरा, विश्वमोहिनी एवं लक्ष्मी जी- सुमित आनन्द, कालादेव- राम कृष्ण कन्नौजिया, पीला देव- कुक्कू शर्मा, मंत्री सचिन आनन्द, नरेश छाबड़ा, गौरव जग्गा, पुरूराज बेहड़ व कनव गंभीर नें निभाया।
मंच संचालन मंच सचिव संदीप धीर, विजय जग्गा एवं सुशील गाबा नें संयुक्त रूप से किया।